वीरेंद्र सिंह सेंगर बबली
रीवा. शुक्रवार 23 जून की सुबह से ही अचानक पुलिस के मोबाइल स्टेटस के रंग बदलने लगे। देखते ही देखते दोपहर तक में प्रदेश के डीएसपी से लेकर सिपाही तक के मोबाइल स्टेटस पर लाल रंग पर बस एक ही स्टेटस दिखने लगा खाकी का भी तो मान है ना। जिसने भी यह स्टेटस देखा उसके दिमाग में एक ही सवाल उठा कि पुलिस विभाग में आखिर क्या हो गया जो पुलिस अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक जनता के सामने यह सवाल कर रहा है। यह अलग बात है कि पुलिस को असमाजिक तत्व हेय की दृष्टि से देखते है, लेकिन जहां संभ्रात नागरिकों की बात की जाये तो वह खाकी को सम्मान की नजर से देखते है। सीमा पर खड़ा सिपाही देश की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाता है तो सीमा के अंदर खाकी भी अपने घर-परिवार और अरमानों की आहुति देकर असमाजिक तत्वों से जनता की सुरक्षा करता है। जनता ने खाकी से किसी भी त्योहार क्या पूछा कि भैया आप इस चिलचिलाती धूप, या हाड़ कांप ठंड, मूसलाधार बारिश में क्यो पहरा दे रहे। हां इस बात पर जरुर उंगली उठाई कि पुलिस ने घूंस ले लिया, पुलिस वर्दी का रूआब दिखा रही। न तो पुलिस को सप्ताहिक अवकाश मिलता है और न ही त्योहारों की छुट्टी। सुबह होते ही शरीर में खाकी को लपेटता है तो उसे यह नहीं मालूम होता कि खाकी कर उतरेगी।
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चोर, बदमाशों को पकडऩे के साथ ही सम्मन, वारंट तामीली, चालान, विवेचना, सड़ी हुई बदबू मारती लाशों को उठाना, पंचनामा, पीएम, यातायात व्यवस्था, व्हीआईपी ड्यूटी, मंत्री, विधायकों के साथ साये की तरह चलना न जाने कैसे-कैसे काम पुलिस करती है। उसके बाद भी लोगों के नजर में पुलिस की इज्जत नहीं है। खैर हम चलते है शुक्रवार 23 जून की उस बात की ओर जो देखने में तो ऐसा लगता है कि पुलिस की सहनशक्ति अब टूट गई है और जनता से ही सवाल कर रही या फिर सरकार से कि खाकी का भी तो मान है ना। वैसे यह टाइटल तो इंदौर के एक अखबार ने दिया जिसे पुलिस विभाग ने जमकर वायरल किया। मामला भी इंदौर से जुड़ा हुआ है कुछ दिन पहले प्रदेश सरकार की शाखा विहिप और बजरंगदल के लोगों ने इंदौर में लॉ-एंड-आर्डर की स्थिति निर्मित कर दी। इतना ही नहीं पुलिस जब कंट्रोल करने पहुंची तो भाजपा के संगठित दलों ने पुलिस पर हमला कर दिया। पुलिस भी अपने बचाव और स्थित को कंट्रोल में करने के लिए लाठी भांजी। इस हंगामे में भाजपा के संगठित शाखा के कई लोगों के साथ ही पुलिस कर्मी भी घायल हुये। न्यायालय भी कहती है कि लॉ-एंड-आर्डर की स्थिति में उपद्रवियों को कंट्रोल में करने के लिए पुलिस को बल का उपयोग करने का अधिकार है। इतना ही नहीं जब बात अपनी जान पर आ जाये तो सामने वाले को गोली भी मार सकती है। तब ऐसे में पुलिस पर अपराध दर्ज क्यों?
फर्जी शिकायत और अधिकारियों की धौस से भी गुजरती है खाकी
थाना से लेकर एसपी, एआईजी कार्यालय में फर्जी शिकायतों को अंबार लगा रहता है। मजे की बात तो यह है कि कूटरचित कहानी पर एफआईआर दर्ज करवाने के लिए छुटभैया नेता से लेकर मंत्री, विधायक तक दबाव बनाते हैं। इन दवाबों से गुजरने के साथ ही छोटी से चूक हो जाने पर पुलिस कर्मियों को अपने अधिकारियों की धौंस से गुजरना पड़ता है। लाइन अटैच से लेकर निलंबन, विभागीय जांच और सजा तक का सामना करना पड़ता है। जिससे खाकी मानसिक तनाव में हमेशा रहती है और थोड़ी सी शब्दों में कहीं चूक हो जाये तो लोग राशन पानी लेकर पुलिस पर चढ़ बैठते है। महिला ऊर्जा डेस्क में देखे तो बलात्कार की शिकायत दर्ज करवाने के लिए लाइन लगी होती है। कोई प्रेम प्रसंग टूटने का दुखड़ा लेकर आता है तो कोई गांव के राजनैतिक दलदल में फंस कर उसके दुश्मन पर एससीएसटी के साथ ही छेड़छाड से लेकर रेप तक किये जाने की शिकायत लेकर खड़ी रहती है। ऐसे में पुलिस किस दौर से गुजरती है इस बात का अंदाजा लगाने के बजाय पुलिस पर ऊंगली उठाने वालों की कमी नहीं है।
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भाजपा सरकार के सिर पर मंडराने लगा खतरा, हो सकता है सत्ता परिवर्तन
इंदौर में बजरंगदल एंव विहिप द्वारा किये गये उपद्रव पर उल्टा पुलिस पर ही ढ़ीकरा फोड़ दिया गया। सरकार भी अपनी शाखाओं के पक्ष पर खड़ी दिखाई दी। सरकार के आगे पुलिस बौनी दिखाई देने लगी। जबकि बजरंगदल और विहिप ने ही दंगे की शुरुआत की और पुलिस कर्मियों पर पत्थरबाजी की। गनीमत रही एक वीडियों ऐसा निकल कर सामने आया जिसमें सरकार के शाखाओं की पोल खुल गई। बजरंगदल और विहिप के पदाधिकारी, कार्यकर्ता एक पुलिस अधिकारी का कालर पकड़ कर घसीट रहे। इतना ही नहीं एक महिला पुलिस अधिकारी को भी जमीन पर घसीट रहे। वह दृश्य देख बजरंगदल, विहिप और गुंडो में कोई फर्क समझ नहीं आ रहा था। फर्क यह है तो यह कि गुंडे वर्दी के खौफ से भाग जाते परंतु भाजपा का संगठित शाखा सत्ता के गुरुर में वर्दी पर ही हमला कर बैठा और सत्ता अपने संगठित शाखा बचाव में दिखाई दी। परिणाम यह हुआ कि इंदौर में सुलगी चिंगारी प्रदेश में पुलिस विभाग के अंदर आग लगा दी। और पुलिस वाला चाहे वह अधिकारी हो या फिर सिपाही एक ही सवाल कर रहा खाकी का भी तो मान है ना? पुलिस विभाग में फैला यह आक्रोश यदि ठंडा नहीं हुआ तो आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कही ऐसा न हो कि सत्ता परिवर्तन की लहर में प्रदेश की खाकी न बह जाये?
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