पांच सौ वर्ष पूर्व सेंगर वंश के राजाओं कराया था मंदिर का निर्माण
मां अष्टभुजा का मंदिर मध्य प्रदेश के रीवा जिले के नईगढ़ी में स्थित है। नवरात्रि का समय चल रहा है। श्रद्धालुओं की भीड़ देवी मंदिरो में उमड़ रही है। मध्यप्रदेश के रीवा रियासत में एक से बढ़ कर एक प्राचीन देवी मंदिर हैं। उन्ही में से एक मऊ रियासत के नईगढ़ी में प्राचीन देवी मंदिर है। जिनको माँ अष्टभुजा के नाम से श्रद्धालुगण जानते हैं। मां अष्टभुजा के दरबार में जो भी श्रद्धालु पहुंचा उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। आज भी वहां मां के भक्त बकरे की बलि देते हैं। बताया जाता है कि पांच सौ वर्ष पूर्व सेंगर वंश के राजाओं द्वारा उक्त मंदिर का निर्माण कराया गया था।
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बार-बार ढह रहा था किला, मां दिया स्वप्त
कहते है कि यूपी के जालौन जिला स्थित जगम्मनपुर से सेंगर वंश के राजा रीवा आये थे और मऊ, गंगेव सहित नईगढ़ी में अपना राज्य स्थापित किये। नईगढ़ी में जब किले का निर्माण करवाया जा रहा था तो निर्माणाधीन किला बार-बार धराशाई हो जाता था। तब मां अष्टभुजा ने तत्कालीन राजा को स्वप्न दिया और बताया कि जिस स्थान पर किले का निर्माण किया जा रहा है वह स्थान मेरा है किले का निर्माण कहीं और किया जाये। तब जाकर राजा ने मंदिर प्रांगण से एक किलोमीटर दूर किले निर्माण करवाया और तब से वहां का नाम नईगढ़ी पड़ गया। बताया जाता है कि मां अष्टभुजा ज्वाला के रूप में प्रज्वलित हुई थी जो सेंगरवंश के राजाओं के लिए बरदानी हो गई। सेंगरवंश उनको अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं।
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मंत्रोच्चार के साथ बकरे पर अक्षत डालते ही हो जाता है खड़ा
नवरात्रि के दिनों में अष्टमीं और नौंवी के दिन श्रद्धालु मां अष्टभुजी को जिंदा बकरा भेंट करते हैं। मंदिर के पुजारी मां अष्टभुजी के सामने बकरे पर मंत्रोच्चार के साथ अक्षत डालते हैं और बकरा वहीं मूर्छित होकर गिर जाता है। कुछ देर बाद पुजारी पुन: मंत्रोच्चार के साथ अक्षत बकरे पर डालते हैं तो बकरा खड़ा हो जाता है। इस दृश्य को देखने श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। मां अष्टभुजी की ख्याति रीवा ही नहीं यूपी के प्रयागराज एवं मिर्जापुर तक फैली हुई है। प्रतिवर्ष नवरात्रि के दिनों में रीवा सहित यूपी तक के श्रद्धालुओं की भीड़ मां अष्टभुजी के दर्शन के लिए उमड़ती है।

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