नई दिल्ली। शादी होने के बाद जब बच्चे का जन्म होता है तो पैदा होने से लेकर 3 साल तक माता-पिता बच्चे को डॉक्टरों के पास ले जाने, जांच, फॉलो-अप, टीकाकरण आदि में व्यस्त रहते हैं। इसके बाद शुरू होता है बच्चों की पढ़ाई के लिए खुद को झोंकने का सिलसिला। दरअसल भारत में पढ़ाई और इलाज की खर्च काफी अधिक है। और यह दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा हैं। सरकारें भी इस ओर ध्यान नहीं देती हैं। तमाम तरह की मुफ्त और लुभावनी योजनाएं केंद्र और राज्य सरकारें चलती हैं। जिनका मकसद सत्ता हासिल करना या फिर सरकार में बने रहना होता है।
ऐसे बढ़ रहा पढ़ाई का खर्च
पिछले एक दशक के दौरान देश में खुदरा महंगाई दर (retail inflation) जहां 5.6% बढ़ी है, वहीं हायर एजुकेशन (higher education) की महंगाई दर सालना 11% से 12% तो वहीं स्वास्थ्य क्षेत्र की महंगाई दर सालाना 14% बढ़ी है। पिछले 6 सालों में तो पढ़ाई पर होने वाला खर्च लगभग दोगुना हो गया है। बैंकबाजार के मुताबिक, अभी देश के प्राइवेट कॉलेजों में 4 साल वाले बीटेक कोर्स की फीस (btech course fees) औसतन 10 लाख रुपए है, वहीं 2 साल के MBA की फीस 24 लाख और एमबीसीएस (MBCS) की फीस करीब 50 लाख है। जबकि विदेश से ग्रेजुएट कोर्स (graduate course) करने पर करीब एक करोड़ रुपए खर्च बैठता है। बताया जा रहा है कि पढ़ाई का खर्च आगामी 10 साल में मौजूदा स्तर से तीन गुना होने की आशंका है। ऐसे में जरूरी है कि पैरेंट्स को बच्चों के लिए ऐसे विकल्पों में निवेश करना चाहिए जो पढ़ाई और स्वास्थ की महंगाई से मुकाबला करने में मददगार हो सके।
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