रहिये अपडेट, रीवा. मध्यप्रदेश के रीवा से आदि शंकराचार्य का अतीत जुड़ा हुआ है। अब से करीब 1205 वर्ष पहले एकात्म दर्शन का संदेश लेकर वह रीवा आए थे और यहां बीहर नदी के किनारे रुके थे। वहीं पर इस अंचल के तत्कालीन धर्म गुरुओं के साथ उनकी चर्चा हुई थी। इसी स्थान पर उन्होंने देश के पांचवें मठ की स्थापना की घोषणा भी की थी। तब से इसका नाम पंचमठा हो गया और यह बड़े आध्यात्मिक केन्द्र के रूप में जाना जाता है। उस दौरान रीवा शहर अस्तित्व में नहीं था। यह जंगली क्षेत्र था, अमरकंटक और प्रयाग के मध्य होने की वजह से यहां पर साधु-संतों का विश्राम होता था। रीवा से छह वर्ष पूर्व सरकार ने प्रदेश के चार प्रमुख जगहों से एकात्म यात्रा निकाली थी, जिसमें रीवा भी शामिल था। यहां से निकली यात्रा कई जिलों से गुजरी और आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करने के लिए लोगों से धातुओं सहित अन्य सहयोग मांगा था। आज ओंकारेश्वर में एकात्म धाम का लोकार्पण हो रहा है।
पांचवें मठ की स्थापना का प्रमाण
इतिहासकारों का कहना है कि कालांतर में यह क्षेत्र रेवा पट्टनम के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1986 में कांचीकामकोटि के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती अपने उत्तराधिकारी विजयेन्द्र के साथ यहां आए थे। उन्होंने भी कहा था कि आदि शंकराचार्य के भ्रमण में रीवा का प्रवास और पांचवें मठ की स्थापना का प्रमाण मिलता है। यहां पर समय-समय पर कई शंकराचार्य पहुंच चुके हैं।
मध्य भारत में भी आध्यामिक केन्द्र को विकसित करना चाह रहे थे
देश के चार हिस्सों में मठों की स्थापना के बाद मध्य भारत में भी आदि शंकराचार्य ऐसे आध्यामिक केन्द्र को विकसित करना चाह रहे थे जहां से एकात्म दर्शन को आगे बढ़ाते हुए सामाजिक एकता की अलख जगाई जा सके। देशाटन पर निकले आदि शंकराचार्य ओंकारेश्वर, काशी, प्रयाग के बाद रीवा आए थे।
बौद्धों के बढ़ते प्रभाव के चलते रीवा को चुना
आठवीं सदी में विंध्य क्षेत्र में बौद्धों का प्रभाव अधिक था। उसे समाप्त कर एकात्म दर्शन से जोडऩे के लिए आदि शंकराचार्य देशाटन पर निकले थे। दूसरे मठों में वह उत्तराधिकारी नियुक्त कर चुके थे लेकिन रीवा में उसकी व्यवस्था करने से पूर्व ही 32 वर्ष की आयु में सन 820 में उन्होंने प्राण त्याग दिए, इस कारण यह क्षेत्र आध्यात्मिक रूप से विकसित नहीं हो सका। बौद्धों के प्रभाव के प्रमाण स्वरूप देउर कोठार, त्योंथर, भरहुत जैसे कई उदाहरण हैं। माना जाता है कि शंकराचार्य के रीवा प्रवास के बाद से ही इस अंचल में सनातन का प्रभाव बढ़ा था।
नए स्वरूप में पंचमठा
रीवा का पंचमठा धाम अब नए स्वरूप में आ गया है। कुछ दिन पहले ही इसका लोकार्पण हुआ है। पांच करोड़ रुपए की लागत से परिसर को व्यवस्थित किया गया है। कहा जाता है कि सन 818 में यहां पर आदि शंकराचार्य द्वारा ही शिवलिंग की स्थापना की गई थी, बाद में मंदिर बनाया गया।
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