Rewa: अब अपने घरों में ही पायडल मारकर तैयार की जा सकेगी बिजली, रीवा के दीपांशु की पार्ट डिजाइन और थ्योरी को आईआईटी रुढ़की ने स्वीकारा

Friday, 12 January 2024

/ by BM Dwivedi

रहिये अपडेट, रीवा। पायडलिंग एनर्जी इलेक्ट्रिफिकेशन प्रोजेक्ट में शासकीय इंजीनियरिंग कालेज रीवा के छात्र दीपांशु चतुर्वेदी ने अपने हिस्सेदारी निभाई है। इनके द्वारा बताए गए सिद्धांतों और मॉडल के लिए तैयार किए गए डिजाइन को आईआईटी रुढ़की द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। यह रीवा इंजीनियरिंग कालेज के साथ ही पूरे प्रदेश के लिए लिए प्रसन्नता की बात है। क्योंकि प्रदेश से अकेले छात्र हैं जिन्हें रुढ़की जैसे बड़े संस्थान के साथ बड़े प्रोजेक्ट में काम करने का अवसर मिला है। केन्द्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट पर काम के लिए आईआईटी रुढ़की को अध्ययन करने की जिम्मेदारी दी है। जिसके डिजाइन एनोवेशन सेंटर में अध्ययन के लिए दीपांशु को चुना गया था। इन्होंने पायडलिंग एनर्जी में एवरेज एनर्जी को कैसे किसी डिवाइस में संचित किया जा सकता है, इसके लिए अपने सिद्धांत दिए और उसके लिए पार्ट भी डिजाइन करके दिया। प्रोफेसर विभूतिरंजन भट्टाचार्य के निर्देशन में दीपांशु के साथ एक और शोधार्थी को शामिल किया गया था। बीते साल रुढ़की में एक ऐसी मशीन तैयार की गई है, जिससे पायडलिंग के दौरान बिजली उत्पन्न होगी और वह एक डिवाइस में संचित होगी। इस बिजली से घर में बल्ब जलाने के साथ ही मोबाइल और लैपटॉप जैसे यंत्रों की बैटरी चार्ज की जा सकेगी। अध्ययन के कुछ दूसरे चरण इस प्रोजेक्ट में अभी चल रहे हैं। रीवा के दीपांशु ने सिद्धांतों के साथ ही एवरेज एनर्जी संचित करने के लिए उसके पार्ट की डिजाइन तैयार की है। आने वाले समय में यह मॉडल बाजार में आएगा और लोग अपने घरों में खुद पायडल मारकर बिजली तैयार कर सकेंगे। यह उन लोगों के लिए लाभदायक होगा जो सुबह-शाम साइकिलिंग करते हैं। वह अपने घर पर ही व्यायाम भी कर सकेंगे और बिजली भी उससे बनाई जा सकेगी। यह बिजली चार से छह घंटे तक घर के छोटे उपकरणों में उपयोग की जा सकेगी। 


100 लोगों पर हुआ है अध्ययन

दीपांशु ने मुताबिक रुढ़की के आईआईटी में पायडलिंग एनर्जी इलेक्ट्रिफिकेशन प्रोजेक्ट में 100 लोगों पर अध्ययन किया गया। इससे एवरेज एनर्जी तय की गई और उसके अनुसार पायडलिंग के लिए शाफ्ट तैयार किए गए। इसमें हर उम्र के लोगों को शामिल किया गया। बच्चों, महिलाओं के साथ बुजुर्गों से भी पायडलिंग कराई गई। साथ ही शारीरिक रूप से मजबूत और कमजोर लोगों को शामिल किया गया, इससे एवरेज एनर्जी तय हुई। इस प्रोजेक्ट में काम करने वालों में दीपांशु सबसे कम उम्र के हैं, इनकी उम्र अभी 19 वर्ष है। यह मूलरूप से रीवा जिले के सोहागी के देवेन्द्रनाथ चतुर्वेदी के पुत्र हैं और रीवा में अनंतपुर में रहकर इंजीनियरिंग के मैकेनिकल ब्रांच में पढ़ाई कर रहे हैं। यह इनका तीसरा वर्ष है। 


दो महीने में पूरा करना है काम 
बतादें कि दिल्ली आईआईटी में इनदिनों टेन फोल्ड इंजीनियङ्क्षरंग प्रोजेक्ट में भी दीपांशु चतुर्वेदी काम कर रहे हंै। इनके साथ आईआईटी मुंबई का भी एक छात्र है। दो महीने में इस पर काम पूरा करना है। इसमें सोलर पैनल के साथ सेंसर का उपयोग किया जा रहा है। जिससे बिजली भी बनेगी और धूप की किरणों को भी रोकेगा। यह उन स्थानों के लिए फायदेमंद होगा जहां पर घरों में धूप की वजह से परेशानी होती है। धूप को रोकने के साथ ही उससे बिजली भी बनाने का काम किया जाएगा। इसके लिए ऐसा उपकरण तैयार किया जा रहा है जो घरों में हर मौसम की उपयोगिता के अनुकूल हो। इसमें भी पार्ट डिजाइन का काम कर रहे हैं। 

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