रहिये अपडेट, डेस्क। वैदिक पंचांग के अनुसार श्रवण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुरूप इस दिन बहने अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र यानी कि राखी बांधती है और भाई, बहन को रक्षा करने का वचन देते है. भाई-बहन के प्रेम का प्रतिक ये त्यौहार जैन, सिख और बौद्ध धर्म में भी उतने ही उल्लास के साथ मनाया जाता है, जितना कि हिन्दू धर्म में. पर क्या आपको ये पता है कि इस पर्व को मानाने की शुरुआत कब, कहाँ और कैसे हुई थी ?
राखी त्यौहार से जुड़ी एक सबसे प्रसिद्द कहानी है, जिसे हमें स्कूल की किताबों में पढ़ाया गया , वो है रानी कर्णावती और हुमायु की कहानी। बताया जाता है कि 16वीं शताब्दी में जब बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया तब वहां की रानी करणावती ने मदद की गुहार करते हुए मुगल बादशाह हुमायूं को रक्षा सूत्र भेजा था. जिसके बाद हुमायूं ने तुरंत अपनी सेना के साथ मेवाड़ की ओर कूच कर दिया। इस कहानी में ये जिक्र भी मिलता है कि हुमायूं अपने इस अभियान में असफल रहें। लेकिन उनके प्रयासों ने राखी के शक्तिशाली बंधन और कर्तव्य की भावना को उजागर किया। और तबसे ही राखी का पवन पर्व मनाया जाने लगा. लेकिन आपको बता दें कि इतिहासकारों द्वारा लिखी गई और पढ़ाए जाने वाले इतिहास की किताब या किसी भी अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों में इस घटना का कोई भी जिक्र नहीं मिलता है. वैसे रानी कर्णावती के पति राणा सांगा, मुग़ल आक्रांता बाबर के दुश्मन थे और बाबर ही हुमायु का पिता था. तो हुमायु अपने पिता के दुश्मन की पत्नी की रक्षा करने के लिए अपनी सेना भेजे ये सुने में अजीब लगता है. बता दें कि रानी कर्णावती और हुमायु की ये कहानी जो स्कूल में पढाई जाती है उसे एक अंग्रेज कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी किताब एनल्स एन्ड एंटीक्युटिस ऑफ़ राजस्थान नामक किताब में लिखा था. लेकिन इतिहासकार सतीश चंद्रा अपनी किताब हिस्ट्री ऑफ़ मेडिवल इंडिया में लिखते हैं कि कर्णावती द्वारा हुमायु को राखी भेजने की घटना का जिक्र कहीं नहीं किया गया है और ये झूठ हो सकती है. वहीं इतिहासकार अर्चना गुप्ता श्रुति गरोदिया अपनी किताब 'हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया फॉर चिल्ड्रन: फॉर्म द मुगल्स टू दी प्रेजेंट में लिखती हैं कि हुमायु चित्तोड़ तब पंहुचा था जब बहादुर शाह को यहां कब्जा जमाए महीनों बीत गए थे. हुमायु इस बात का इंतजार कर रहा था कि कब मेवाड़ का साम्राज्य ध्वस्त हो जाए. वहीं एसके बनर्जी अपनी किताब 'हुमायु बादशाह' में लिखते हैं कि बहादुर शाह ने हुमायु को पत्र लिखते हुए कहा था कि वो काफिरों से लड़ रहा है इसके बदले में हुमायु ने लिखा था कि उसके दिल का दर्द ये सोचकर खून में बदल गया है कि एक होने के बावजूद हम दो हैं. और ये बात हर कोई जनता है कि रानी कर्णावती के पोते महाराणा प्रताप, हुमायु के बेटे अकबर के सबसे बड़े दुश्मन थे . खैर हम अब आपको रक्षा बंधन मानाने की असली वजह बताते हैं.
द्रौपदी ने कृष्ण की उंगली में बांधा था साड़ी का टुकड़ा
कहा जाता है, जब भगवान कृष्ण ने दुष्ट राजा शिशुपाल का वध किया तब सुदर्शन चक्र से उनकी ऊँगली कट गयी. इस दौरान वहां खड़ी द्रौपदी से ये देखा नहीं गया और उन्होंने अपनी साड़ी को फाड़ कर भगवान् श्री कृष्ण की उंगली पर बाँध दिया। जिसका मोल भगवान् ने द्रौपदी के चीरहरण के समय चुकाया। और इस घटना के बाद से ही बहने, भाई की कलाई पर राखी बाँधने लगी .
द्वापर युग से पहले की परंपरा
राखी का त्यौहार मानाने की परम्परा द्वापर युग से भी पहले से चली आ रही है. जिसका उल्लेख, स्कन्द पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भगवद गीता में भी मिलता है . गीता में वामन अवतार नामक कथा में रक्षाबंधन का जिक्र है जिसमे बताया गया है कि राक्षस राजा बलि का अहंकार चूर करने के लिए भगवान् विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के पास भिक्षा माँगने पहुंचे। और उन्होंने बलि से भिक्षा में मात्रा तीन पग भूमि की मांग की और तीन पगों में उन्होंने धरती, आकाश और पाताल तीनों नाप दिया। इसके बाद भगवन ने बलि को रसातल में भेज दिया। लेकिन बलि ने अपनी भक्ति के दम पर भगवान् से अपने सामने रहने का वचन ले लिया। जिसके बाद अपने पति को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी ने एक लीला रची. एक गरीब महिला का रूप धारण कर राजा बलि के पास गईं और उनकी कलाई पर एक धागा बाँध दिया। रसातल में बैठे बलि के पास उस महिला को देने के लिए कुछ नहीं था. इसलकिये बलि ने महिला से कहा कि बेहेन मेरे पास तुम्हे देने के लिए अभी कुछ नहीं हैं. इसपर माँ लक्ष्मी अपने असली रूप में आ गयी और बोली कि तुम्हारे पास तो भगवन हैं, तुम उन्हें ही हमें देदो। राखी के बंधन में बढे बलि ने तब भवन को जाने दिया। और राखी के फ़र्ज़ को निभाया।
अब हम आपसे राक्षी से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण कहानियों को साझा कर चुके हैं. अब ये आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किसे सत्य मानते हैं और किसे नहीं। आपको ये जानकारी कैसे लगी कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं, आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाए।
No comments
Post a Comment