रीवा। शहर के सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में 65 वर्षीय गंभीर बीमारी के मरीज का सफल ऑपरेशन कर डाक्टर्स ने नया जीवन दिया है। मरीज को मूत्राशय कैंसर (कार्सिनोमा ब्लैडर) के आखिरी चरण में पहुंचने के बाद अस्पताल लाया गया। जहां पर जांच के दौरान पता चला कि दोनों किडनियों की कार्यक्षमता कमजोर हो गई है। मरीज का सीरम क्रिएटिनिन स्तर 12 और हीमोग्लोबिन 5 ग्राम प्रति डेसीलीटर तक गिर चुका था, जिससे उसकी स्थिति बेहद नाजुक हो गई थी। यूरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. बृजेश तिवारी ने पहले दोनों किडनियों में ट्यूब डाले ताकि गुर्दों पर से दबाव हटाया जा सके और यूरिन निकाला जा सके। इस प्रक्रिया से गुर्दों की कार्यक्षमता में सुधार हुआ और मरीज की हालत स्थिर होने लगी। इस बीच मरीज को 5 यूनिट ब्लड चढ़ाया गया। इसके बाद डॉ. तिवारी ने मरीज का जीवन बचाने के लिए जटिल सिस्टेक्टॉमी (मूत्राशय को हटाना) किया। इसे पूरी तरह से निकालना आवश्यक था, इसलिए डॉक्टर ने मरीज की आंत के एक हिस्से का उपयोग करके नया मूत्राशय बनाया। इसे इलियल कंडिट डाइवर्जन निर्माण कहा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत, आंत का एक हिस्सा मूत्राशय के रूप में ढाल दिया जाता है, जिससे यूरिन का प्रवाह नए मार्ग से हो सके। रीवा में पहली बार इस तरह का प्रयास किया गया है। डा. बृजेश तिवारी ने बताया कि कार्सिनोमा ब्लैडर यानी मूत्राशय का कैंसर तब होता है जब इसकी आंतरिक दीवारों में असामान्य कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं। स्टेज 4 में यह कैंसर मूत्राशय से बाहर फैलकर आसपास के अंगों और लसिका ग्रंथियों (लिम्फ नोड्स) में फैल जाता है, जिससे मरीज की जान को खतरा होता है। इस स्थिति में, मरीज के दोनों गुर्दों पर दबाव होने के कारण उनकी कार्यक्षमता भी लगभग समाप्त हो चुकी थी, जिससे द्विपक्षीय अवरोधक नेफ्रोपैथी विकसित हो गई थी।
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