Buddhist followers of Vindhya joined the liberation movement of Mahavihar Bodhgaya: रीवा. बुद्ध धम्म के सबसे पवित्र स्थल महाबोधि महाविहार बोधगया को बौद्ध अनुयायियों को प्राप्त हो उसके मुक्ति के लिए 12 फरवरी से आमरण अनशन प्रारंभ किया गया है। इसके समर्थन में कई देशों के बौद्ध भिक्षु एवं बौद्ध उपासक पहुंच रहे हैं तो वहीं विंध्य के भी बौद्ध अनुयायी आंदोलन में शामिल हो रहे हैं।
रीवा से आंदोलन में शामिल प्रदेश अध्यक्ष भारतीय बौद्ध सभा सीएल बौद्ध, उपाध्यक्ष आरएस बौद्ध रीवा ने बताया बताया कि महामानव तथागत बुद्ध को इसी स्थान बोधगया में ज्ञान प्राप्त हुआ और बौद्धित्व प्राप्त हुआ था और सम्राट अशोक के द्वारा विशाल बुद्ध मंदिर बनवाया गया था। बाद के बुद्धिस्ट राजाओं द्वारा उक्त बुद्ध विहार में महामानव भगवान बुद्ध की भब्य प्रतिमा भी स्थापित की गई थी। श्रीलंका के बौद्ध भिक्षु अनारिक धम्मपाल के द्वारा 134 वर्ष पूर्व सन 1891 में महाबोधि महाविहार बुद्ध मंदिर के मुक्ति के लिए आंदोलन शुरू किया गया था और महाबोधि महाविहार बोधगया को मुक्ति के लिए समय-समय पर आंदोलन एवं उसकी मांग उठती रही है। इसके पूर्व जापान के पूज्य भिक्षु सुरई ससई ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आंदोलन शुरू किया था। उक्त महाबोधि महाविहार को मुक्ति के लिए आंदोलनकारी ने मांग की है कि संविधान लागू होने की तिथि 26 जनवरी 1950 के पूर्व तत्कालीन सरकार द्वारा बनाया गया बीटीएमसी एक्ट कानून 1949 को समाप्त किया जाए और महाविहार का प्रबंधन अधिकार बौद्ध अनुयायियों को सौपा जाय। बोधगया के मुक्ति के लिए 26 बुद्धिस्ट देश के बौद्ध भिक्षु एवं बौद्ध अनुयायियों तथा उपासक आंदोलन में शामिल हुए हैं। वहीं विंध्य से चिंतामणि पगारे, बीपी बौद्ध, एसएल बौद्ध, अनिल बौद्ध, सत्य सागर, अनीता सागर, संजय कुमार, सूर्यभान, द्वारिका सिंह, बौद्ध भंते धम्मप्रिय, भन्ते तीर्थ प्रताप वत्स, भन्ते महेंद्र बोधी, भन्ते धम्मरक्षक आदि ने बुद्ध उपासकों से अधिक से अधिक संख्या में आंदोलन में शामिल होने की अपील की है।
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