नकारात्मक चिंतन ले जाता है पीछे, सकारात्मक चिंतन से बदलेगा समाज, रुकेंगे अपराध

Sunday, 2 March 2025

/ by BM Dwivedi

रीवा. जनमानस को सच्चा न्याय मिले, अपराध मुक्त और चरित्रवान समाज बने तथा न्यायविदों की इसमें क्या भूमिका हो, इस भाव को लेकर स्थानीय वृंदावन गार्डन में ब्रह्माकुमारी संस्थान रीवा द्वारा राष्ट्रीय न्यायाविद् सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें न्यायाधीशों ने इस बात पर जोर दिया कि नकारात्मक चिंतन न केवल हमे पीछे ले जाते हैं बल्कि मानसिक तनाव और अपराध बढ़ते है। इसलिए सकारत्मक ङ्क्षचतन से ही समाज बदलेगा और सुसंस्कृत समाज की रचना होगी। 

मुख्य वक्ता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. राठी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष न्यायविद् प्रभाग ने कहा कि समाज की विकृति और बढ़ते अपराधों के पीछे हम सबकी गलती है। क्योंकि हममे इस बात का चिंतन ही नहीं है कि पैदा क्यों हुए हैं, क्या कर रहे हैं और क्या करने जा रहे हैं। कहने का तात्पर्य है कि न्यायाधीश, वकील और पक्षकार तथा समाज सब कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार हैं और इसका कारण नकारात्मक चिंतन ही है। पूर्व न्यायाधीश राठी ने कहा कि आज समाज में सब प्रकार से विकृति आ गई है। इसलिए सोसायटी नहीं बची है और सब प्रकार के अपराध बढ़े हैं। न्यायालय और न्यायाधीशों की जिम्मेदारी और उनपर भार बढ़ा है। लेकिन न्यायाधीश, अधिवक्ता और सिटिजन हम-सब की जिम्मेदारी है कि कानून, न्याय और समाज में आई गिरावट से उनको बाहर निकालें। 

प्रभारी आईजी साकेत पाण्डेय ने पुलिस विभाग में आध्यात्मिकता एवं मानसिक संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया। वहीं बीके नथमल भाई उड़ीसा ने बताया कि अधिवक्ता समाज में न्याय व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ नैतिक जागरूकता फैलाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष राजेन्द्र पाण्डेय ने भी अपनी बात रखी। कार्यक्रम का मार्गदर्शन बीके निर्मला दीदी ने किया एवं संचालन बीके प्रकाश भाई ने किया। इस अवसर पर ममता नरेन्द्र सिंह सहित कई अधिवक्ता एवं समाजसेवी और प्रबुद्धजन मौजूद रहे। 

इस मौके पर पूर्व न्यायाधीश राठी ने आध्यात्म पर जोर दिया। कहा कि आध्यात्म से विचार शुद्ध होंगे और विचार अच्छे होंगे तो वाणी और कर्म भी अच्छे होंगे। आध्यात्म के जरिए समाज को अपराध से मुक्त कराएं और सामाजिक समरसता का भाव पैदा करें। जब तक नकारात्मक भाव नहीं हटेगा, नियम-कानून बना देने और संसाधन जुटा देने से कुछ नहीं होगा। जगह-जगह शराब की दुकान खोलकर हम बच्चों से कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि वे सुसंस्कृत बनेंगे।  


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