देश के प्रख्यात समाजवादी नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव का 12 जनवरी को निधन हो गया था। वो काफी समय से बीमार चल रहे थे। निधन के पश्चात मध्यप्रदेश में उनके गृहग्राम में अंतिम संस्कार किया गया। स्वर्गीय शरद यादव की अस्थियों का नदी में विसर्जित करने के बजाय देश के दो स्थानों पर जमीन में दबाए जाएंगे। उनकी बेटी सुभाषिनी और पुत्र शांतनु यादव के मुताबिक उनके पिता लिंग भेद के खिलाफ थे। उनकी इच्छानुसार दोनों भाई-बहनों ने मिलकर अपने पिता के अंतिम संस्कार में उन्हें मुखाग्नि दी।
प्रकृति के बेहद करीब थे यादव
बताया गया है कि स्व.शरद यादव प्रकृति के बेहद करीब थे। उन्हें नदियों, पेड़-पौधों और पशुओं के साथ ही अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि से खास लगाव था। हमेशा से ही उनकी इच्छा थी कि उनके देहावसान के बाद उनकी अस्थियों को नदी में बहाने की बजाए उनकी जन्मभूमि बाबई और कर्मभूमि मधेपुरा की जमीन में अंदर दबा दिया जाए। इसके पीछे की वजह यह थी कि वो मानते थे कि अस्थियों को नदी में डालने से वह दूषित होती हैं और यह प्रकृति के विरुद्ध है।
जन्मभूमि और कर्मभूमि में स्थापित कलश
स्व.शरद यादव की भावनाओं का सम्मान करते हुये उनकी अस्थियों को दो कलशों संग्रहित किया गया। एक कलश उनके पैतृक गांव में जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया है, वहां स्थापित कर दिया और दूसरे कलश को उनकी कर्मभूमि मधेपुरा पटना में अंतिम दर्शन तदपश्चात मधेपुरा की जमीन में दूसरे कलश को जमीन के अंदर स्थापित किया जाएगा।
मृत्यु पश्चात भोज कार्यक्रम के खिलाफ थे स्व.शरद
बताया गया है कि स्व.शरद यादव मृत्यु भोज के खिलाफ थे। उनका मानना था कि इस तरह के आयोजन से समाज दूरी और बढ़ती है। क्योंकि हर किसी की आर्थिक स्थिति एक समान नहीं होती है। सक्षम व्यक्ति द्वारा मृत्यु पश्चात भोज के आयोजन से गरीब तबके के व्यक्ति को भी इस प्रथा का अनुसरण करना पड़ता है। जबकि गरीब इसके लिए सक्षम नहीं होते जिससे उनपर कर्ज या अर्थिक बोझ बढ़ता है। इसलिए मृत्यु पश्चात भोज की प्रथा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। स्व.शरद यादव के इन महान विचारों का सम्मान करते हुये उनके मृत्यु पश्चात भोज का कार्यक्रम नहीं रखने का निर्णय लिया गया है।
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