दूसरों को गलत साबित करने की नहीं होनी चाहिए प्रवृत्ति
difference between reverence and blind devotion: प्रसिद्ध कथावाचक और मोटिवेशनल स्पीकर जया किशोरी अपने भजनों के साथ ही मोटिवेशनल कोट्स के लिए भी जानी जाती हैं। मनुष्य के जीवन से जुड़ी कई अहम बातों पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुये मार्गदर्शन कराया है। कुछ दिनों पहले बावेश्वर धाम के आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री को लेकर विवाद उठा है, लोग उन पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगा रहे थे। हालांकि अब सभी लोग उन पर भगवान बालाजी के कृपा की बात का स्वीकार चुके हैं। वहीं जया किशोरी ने श्रद्धा और अंधभक्ति के बीच अंतर को बड़ी ही सरलता से स्पष्ट किया है। उन्होंने इस अंतर को स्पष्ट करते हुये कहा है, कि कई बार लोग श्रद्धा और अंधभक्ति के बीच के भेद को नहीं कर पाते हैं। दरअसल अंधभक्ति वो है जो किसी पर बिना सवाल उठाये की जाती है। जबकि श्रद्धा में मनुष्य सवाल कर सकता है। जया किशोरी ने गीता का उदाहरण देते हुये बताया कि, अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण पर अपार श्रद्धा है, बावजूद उन्होंने अपने मन में उपजे हर सवाल का जवाब श्रीकृष्ण से पूछा। श्रद्धा का मतलब है कि सामने वाला उसके हर सवाल का जवाब देने में सक्षम है, उसकी हर जिग्यासा को शांत कर सकता है।
गलत साबित करने की नहीं होनी चाहिये मंशा
जया किशोरी आगे कहती हैं कि जिसके प्रति आपकी श्रद्धा है, उनसे मन में उठे हर सवाल को पूछते रहना चाहिए। लेकिन, इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिये कि सवाल उत्तर पाने के लिए हो, अपने ज्ञान में वृद्धि के लिये करें। सवाल करते वक्त मन में गलत साबित करने की मंशा कदापि यह नहीं होनी चाहिये। इस बात को समझाने के लिये उन्होंने एक बड़ा ही सुंदर उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि एक बार एक शिक्षक कक्षा में बच्चों को पढ़ा रहे थे। वह ब्लैकबोर्ड पर पहाड़ा लिख रहे थे, लेकिन पहाड़ा की लाइन में बीच में उन्होंने एक गलत नंबर लिख दिया, जिस पर कक्षा के सभी बच्चे हंसने लगे। तब टीचर ने बच्चों को समझाया कि दूसरों को गलत साबित करने की प्रवृत्ति अच्छी नहीं होती है। उन्होंने कहा कि एक गलत नंबर के अलावा ब्लैकबोर्ड पर मैंने कितना सही लिखा है उसपर ध्यान देना चाहिये। तभी आप लोग कुछ सीख पायेंगे। दूसरों की गलती निकालने से कुछ प्राप्त नहीं होगा।
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