उत्तरप्रदेश के वाराणसी में हुआ था जन्म
संत रविदासजी का जन्म 1376 ईस्वी उत्तर प्रदेश के वाराणसी के गोवर्धनपुर गांव में हुआ था। पिता जी का नाम राहू और माता जी का नाम करमा था। संत रविदास जी की पत्नी का नाम लोना बताया जाता हैं। बताया जाता है कि जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ था उस दिन रविवार भी था इसलिए उनका नाम रविदास रख दिया गया। संत रविदास को गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे कई नामों से भी जाने जाते हैं। संत रविदास समतामूलक समाज के समर्थक थे।
भक्तिकाल के महान समाज सुधारक थे संत रविदास
संत रविवास भक्तिकालीन के बेहद धार्मिक स्वभाव वाले संत थे। वो एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने खुद को भगवान की भक्ति में समर्पित करने के साथ ही अपने सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों का भी पूरी तरह से निर्वहन किया। इन्होंने हमेशा ही बिना किसी भेदभाव के आपसी में प्रेम भाव की शिक्षा दी। उनके द्वारा दिये गये उपदेश और शिक्षा आज भी लोगों का मार्गदर्शन करती है। अपने त्यागपूर्ण व आडम्बर रहित जीवन के साथ ही उदारता व विनम्रता के कारण उन्हें संत शिरोमणि माना जाता है। आइये जानते हैं उनके द्वारा दिये गया समाज के लिए अनमोल वचन और विचार-
अनमोल वचन और विचार- किसी भी व्यक्ति की पूजा इसलिये नहीं करनी चाहिये, क्योंकि क्योंकि वह किसी बड़े पद पर आसीन है। यदि व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसकी पूजा कदापि नहीं करनी चाहिये। लेकिन यदि कोर्ह योग्य गुणों वाला व्यक्ति है और भले ही वह किसी ऊंचे पद पर नहीं है, ऐसे व्यक्ति की पूज्यनीय है।
- मान में किसी तरह का बैर व भेदभाव नहीं रखें क्यों कि भगवान उसी के ह्रदय में निवास करते हैं जहां कोई बैर भाव, लालच या द्वेष नहीं होता है।
- कोई व्यक्ति अपने कर्मों से बड़ा या छोटा होता है, जन्म से कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता।
- बिना फल की इच्छा करते हुये हमेशा अपना कर्म करते रहो, क्योंकि हमारा धर्म कर्म करना है और फल हमारा सौभाग्य।
- जिस तरह से सागर में उठने वाली बड़ी लहरें फिर से उसी में समा जाती हैं। लहरों का अपना अलग से कोई अस्तित्व नहीं होता है। ठीक इसी तरह से मानव का भी परमात्मा के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
- अपने अंदर कभी भी कोई अभिमान को मत पालिये। क्यों कि एक छोटी से चींटी शक्कर के दानों को बड़ी ही आसानी से बीन सकती है, लेकिन एक विशाल हाथी ये काम नहीं कर सकता।
- मोह-माया में फसकर जीव सदैव भटक्ता रहता है। जबकि इस माया को जन्मदेने वाला ही मुक्तिदाता है।
- जीव ये मान बैठता है कि यह संसार ही सत्य है, लेकिन यह उसका भ्रम है। वास्तव में यह संसार असत्य है।
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