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सरकार को भी इस पर नजर रखनी चाहिए
आइआइएम इंदौर से 'बढ़ते मोटापे और इसमें फूड मार्केटिंग की भूमिका' (Rising obesity and the role of food marketing in it) पर पीएचडी कर रहे अब्दुल वाहिद खान और प्रो. जतिन पांडेय ने स्टडी की। उन्होंने स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले फूड आइटम्स और उन्हें पसंद करने वालों के मनोविज्ञान के बारे में 2009-2020 के बीच हुई 84 स्टडी की समीक्षा की। स्टडी में सामने आया कि कंपनियां मार्केटिंग के जरिए उपभोक्ताओं की पसंद और खाद्य पदार्थों की मात्रा को प्रभावित करती हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता है कि अस्वास्थ्यकर भोजन में उपभोक्ताओं का मनोविज्ञान कैसे काम करता है। ऐसे में सरकार को भी इस पर नजर रखनी चाहिए।
असली पोषण दाल, सब्जी, अनाज में
शोधकर्ताओं का मत है कि जंक या फास्ट फूड में शुगर, साल्ट और फैट ज्यादा होता है। असली पोषण दाल, सब्जी, अनाज से मिलता है। फास्ट फूड के कारण कम उम्र में मोटापा, हड्डियों में दिक्कत, हार्ट, किडनी आदि की समस्याएं देखने को मिल रही हैं।डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, 1975 के बाद से वैश्विक मोटापा तीन गुना बढ़ा है। भारत में भी स्थिति चिंताजनक है।
कुपोषण की भी बड़ी समस्या
खान बताते हैं कि कैलोरी से भरपूर, लेकिन कम पोषक तत्वों वाले प्रोसेस्ड फूड आइटम की मार्केटिंग और बढ़ती मांग कुपोषण को भी बढ़ा रही है। उपभोक्ता मोटे हो रहे हैं, फिर भी अल्प पोषित हैं। कोविड के दौरान यह समस्या तब और बढ़ी, जब खाद्य असुरक्षा के कारण उपभोक्ता पैक्ड फूड पर निर्भर हो गए। ऐसे में फिटनेस को बढ़ावा देने वाले सरकारी अभियानों में स्वास्थ्य लक्ष्य पर जोर देना चाहिए।
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