शहर से लेकर ग्रामीण अंचल तक कार्यकर्ताओं में असंतोष
रीवा. वर्ष 2023 विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस परिवर्तन का दावा करती है। एक ओर जहां राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले है तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश में कांग्रेस घर-घर, हाथ से हाथ जोड़ो अभियान चला कर कांग्रेस की जन लाभकारी नीतियां और भाजपा की कुरीतियों को जनता सामने रखने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस का असली चेहरा तब उजागर हुआ जब प्रदेश अध्यक्ष एंव राष्ट्रीय महासचिव की अनुशंसा पर आल इंडिया कांग्रेस कमेटी द्वारा प्रदेश सहित रीवा जिले के जिला कांगे्रस कमेटी में नवनियुक्त चेहरे सामने रखे। सूची जारी होते ही रीवा में कांग्रेसियों के बीच आक्रोश की झलक दिखाई देने लगी। विरोध की लहर देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में परिवर्तन का सपना देख रही कांग्रेस ने प्रदेश में वर्षो पूर्व पार्टी की लुटिया डुबोने वाले के इशारे पर अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार ली। एक ओर जहां शहर एवं ग्रामीण अध्यक्ष की दावेदारों के बीच आक्रोश दिखा वहीं दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की सहमति से एआईसीसी के द्वारा उपेक्षित ओबीसी एंव राजपूत समाज में भी चिंगारी सुलग उठी है। गौरतलब है कि रविवार को प्रदेश अध्यक्ष द्वारा जिला कांग्रेस शहर एवं ग्रामीण अध्यक्ष बनाया गया। इतना ही नहीं रीवा के कांग्रेसियों को प्रदेश में भी पदाधिकारी बनाया गया है। जिसमें प्रदेश अध्यक्ष ने ब्राम्हण, वैश्य एवं आदिवासी नेताओं को तो स्थान दिया लेकिन ओबीसी और राजपूत समाज के नेताओं को कोई स्थान नहीं मिला। जबकि मिली जानकारी के अनुसार रीवा लोकसभा के 1666864 मतदाता में से छ लाख ब्राम्हण मतदाताओं को छोड़ दे तो छ लाख ओबीसी मतदाता है जिनमें से लगभग तीन लाख पटेल समाज के मतदाता शामिल है। मिले आंकड़ो के अनुसार रीवा लोकसभा में लगभग दो लाख राजपूत समाज के मतदाता है। जो किसी भी ओर जाते है तो अपने साथ दो-चार-दस मतदाता तो लेकर ही जाते हैं। ऐसे में ओबीसी और राजपूत समाज की उपेक्षा करना कहीं न कहीं कांग्रेस को क्षति पहुंचा सकता है।इसे भी देखें : अधिकारों के लिए जनपद सदस्यों ने बुलंद की आवाज, सम्मान व मानदेय की उठाई मांग
शहर के मशहूर बिल्डर के हाथों ग्रामीण कांग्रेस की बागडोर
शहर कांग्रेस अध्यक्ष गुरमीत सिंह मंगू के स्थान पर प्रदेश अध्यक्ष ने लखनलाल खंडेलवाल को शहर अध्यक्ष का दायित्व सौंप कर भाजपा के वैश्य बोट बैंक में सेंध लगाने की चाल चली, जो काफी हद तक सही माना जा रहा है। परंतु ग्रामीण अध्यक्ष का दायित्व शहर के मशहूर बिल्डर एवं कांग्रेस के कद्दावर नेता राजेंद्र शर्मा को सौंप कर पार्टी में चर्चा का विषय बना दिया। कांग्रेसियों के बीच इस बात को लेकर चर्चा होने लगी कि शहर एवं ग्रामीण कांग्रेस शहर से चलाई जायेगी? इस बात को भी लेकर चर्चा है कि क्या प्रदेश अध्यक्ष की नजर में ग्रामीण अंचल कोई कांग्रेस का सच्चा सिपाही दिखा? जो ग्रामीण अध्यक्ष की कमान संभाल सके।
कांग्रेस के इन सच्चे सिपाहियों के टूट गये सपने
जिला कांग्रेस कमेटी में फेरबदल की सुगबुगाहट कई माह से चल रही थी। कांग्रेस के पूंजीपतियों के साथ पार्टी के सच्चे सिपाही भी इस दौड़ में लगे रहे। लेकिन पूंजीपतियों के आगे इन सच्चे सिपाहियों की दाल नहीं गली। कांग्रेस के ही सूत्रों ने बताया कि राजपूत समाज से शहर अध्यक्ष के लिए मानवेंद्र सिंह नीरज और अल्प संख्यक समाज से वसीम राजा ख्याव देख रहे थे। वहीं ग्रामीण अध्यक्ष पद के लिए राजपूत समाज से सिरमौर विधानसभा क्षेत्र के गिरीश सिंह अमहा और ओबीसी से सेमरिया विधानसभा क्षेत्र के कुंवर सिंह पटेल। इनके साथ ही गुढ़ विधानसभा के बडग़ांव निवासी राकेश तिवारी तथा मनगवां विधानसभा क्षेत्र के बुढ़वा निवासी पूर्व विधायक रावेंद्र मिश्रा सपना संजोये हुये थे। जो रविवार की शाम भोपाल से सूची जारी होते ही टूट गये।
प्रदेश में भी नहीं मिला स्थान
प्रदेश अध्यक्ष एंव पूर्व मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह की अनुशंसा पर एआईसीसी (आल इंडिया कांग्रेस कमेटी) ने कांग्रेस की नई प्रदेश कमेटी का गठन किया। जिसमें स्पष्ट रूप से देखा गया कि पार्टी के खेवनहारों के चहेतों को प्रदेश में स्थान दिया गया। जिनमें से संजीव मोहन गुप्ता, बसपा से चुने गये पूर्व विधायक रामगरीब बनवासी, विमलेंद्र तिवारी को प्रदेश उपाध्यक्ष के पद से नवाजा गया। वहीं रीवा से शिव प्रसाद प्रधान, पूर्व विधायक राजेंद्र मिश्रा, बृजभूषण शुक्ला, गुरमीत सिंह मंगू को प्रदेश में महासचिव का ओहदा दिया गया। परंतु प्रदेश में भी रीवा के न तो राजपूत समाज के नेताओं को स्थान मिला और न ही ओबीसी तथा अल्प संख्यक समाज के नेताओं को। जिसकी वजह से रीवा शहर से लेकर ग्रामीण अंचल में कांग्रेसियों के बीच चिंगारी सुलगने लगी है जो अपने वाले विधानसभा चुनाव तक विकराल रूप ले सकती है।
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