वीरेंद्र सिंह बबली
रीवा. कांग्रेस पार्टी से रीवा लोकसभा प्रत्यासी रहे सिद्धार्थ तिवारी भले ही त्योथर विधानसभा को अपने स्व. दादा श्रीयुत श्रीनिवासी तिवारी की कर्मभूमि मानते हो और विधानसभा चुनाव को लेकर त्योथर विधानसभा को अपने भविष्य की रणभूमि मानते हो। परंतु जो स्वर वहां से निकल कर आ रहे है उन हालातों ने निपटने के लिए सिद्धार्थ तिवारी अपने ही पार्टी के लोगो के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। सिद्धार्थ तिवारी को भाजपा से नहीं अपनी ही पार्टी के उन नेताओं को साधना पड़ेगा जो टिकट की लाइन में लगे हुये है। स्थानीय लोग तो कहते है कि विधानसभा प्रत्यासी अपने ही क्षेत्र का होना चाहिये। यह आवाज कहां से निकली यह तो शोध करने के साथ ही संभल कर चलने का विषय है। बीते कई माह से रीवा लोकसभा से कांग्रेस प्रत्यासी रहे सिद्धार्थ तिवारी राज त्यौथर विधानसभा में लगातार दौरा कर जनसंपर्क कर रहे है। वहीं दूसरी ओर स्थानीय कांग्रेस नेता चाहे वह रमाशंकर सिंह पटेल हो या फिर गीता मांझी ये भी टिकट की दौड़ के साथ ही विधानसभा क्षेत्र में जनसंपर्क साध रहे है। यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि पार्टी टिकट किसे देती है। यदि चर्चा है कि यदि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की चली तो रमाशंकर सिंह पटेल या फिर गीता मांझी चुनाव मैदान में आयेंगी और यदि दिग्विजय सिंह की चली तो सिद्धार्थ तिवारी का चुनाव मैदान में आना तय है।
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बसपा का नहीं दिखा भविष्य तो कांग्रेस का थामा दामन
त्यौथर विधानसभा क्षेत्र में उभरती महिला नेत्री में गीता मांझी का नाम चर्चाओं में है। समाज के साथ ही अन्य वर्ग के लोग भी गीता मांझी को भविष्य में विधायक के रूप में देखते हैं। गीता मांझी ने राजनीति में कदम रखते ही बसपा के दामन से 2015 में त्यौथर जनपद के अध्यक्ष पद के लिए चुनी गई। जिसमें उनको एक तरफा 16 मत मिले थे। लेकिन उनकी आंख तब खुली जब 2018 में त्यौथर विधानसभा से विधायक पद के लिए बसपा से चुनाव मैदान में आई जिसमें उनको हार का सामना करना पड़ा। और अपना राजनैतिक भविष्य तलासने के लिए 2019 में कांग्रेस का दामन थाम जिला पंचायत सदस्य के रूप में वार्ड क्रमांक 21 से चुनाव लड़ गई जिसमें उनको भारी बहुमत हासिल करते हुये 8904 बोटों से विजय हासिल कर वह जिला पंचायत सदस्य रूप में जानी जाने लगी। अब उनका लक्ष्य त्यौथर विधानसभा सीट है
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दो बार हार के बाद तीसरा प्रयास
त्यौथर विधानसभा से कांग्रेस पार्टी के रमाशंकर सिंह पटेल भी कद्दावर नेता माने जाते है। पार्टी ने उन पद दो बार दांव भी खेला लेकिन जीत के किनारे पहुंच कर उनकी नाव डूब गई। फिलहाल वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए रमाशंकर सिंह पटेल भी अपनी पूरी तैयारी में जुटे हुये है। यहां तक की प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ के पास अपनी दावेदारी भी पेश कर दी है। बताते चले कि रमाशंकर सिंह पटेल का वर्ष 2013 में साबिका भाजपा से रमाकांत तिवारी से पड़ा था। जिसमें रमाशंकर सिंह पटेल को लगभग 52 बोट से हार का सामना करना पड़ा। वहीं वर्ष 2018 के चुनाव में रमाशंकर सिंह पटेल और भाजपा प्रतिद्वंदी रहे श्यामलाल द्विवेदी से सामना हुआ। जिसमें रमाशंकर सिंह पटेल का बोट बैंक तो बढ़ा लेकिन लगभग 43 सौ बोट से हार का सामना करना पड़ा।
क्या बोलता है जातीय समीकरण
चुनाव को अब जातीय समीकरण से आका जाता है। जिस समाज के मत ज्यादा होते है पार्टी उसी पर दांव खेलती है। त्यौथर विधानसभा में वैसे तो कोई जातीय गणना नहीं हुई परंतु सभी जातिवर्ग के लोग अपने-अपने समाज की बहुमत होने का दावा करते है। यदि ब्राम्हण बोट को माना जाये तो लोग कहते है कांग्रेस और भाजपा से ब्राम्हण प्रत्यासी उतरने पर निर्णायक बोट ओबीसी और एससी, एसटी होंगे। बताते है कि ओबीसी और एससी,एसटी बोट बैंक में कांग्रेस से रमाशंकर सिंह पटेल और गीता मांझी का सेंध लगा हुआ है। वहीं भाजपा से यदि श्यामलाल द्विवेदी की टिकट कटती है तो पूर्व मंत्री एंव विधायक स्व. रमाकांत तिवारी के पुत्र तिवारी लाल के साथ ही देवेंद्र सिंह तथा योगेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी पैठ बना रखी है।
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