रहिये अपडेट, इंदौर. जिला उपभोक्ता आयोग (District Consumer Commission) ने प्रसव के दौरान हुई गलती से नवजात को गंभीर बीमारी होने के मामले में अस्पताल और डॉक्टर को आदेश दिया है कि वे पीड़ित को 47 लाख रुपए मुआवजा दें। बच्चे का जन्म वर्ष 2006 में हुआ था और परिवार ने 2008 में याचिका लगाई थी। 15 वर्ष बाद 5 अक्टूबर 2023 को आयोग ने फैसला सुनाया। मामले में पैरवी करने वाले अधिवक्ता शांतनुु मित्तल ने बताया कि जिला उपभोक्ता आयोग (District Consumer Commission) के अध्यक्ष बीके पालोदा ने सीएचएल अस्पताल प्रबंधन, डॉ. नीना अग्रवाल और बीमा कंपनी को 45 लाख से ज्यादा का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। इस पर 12 प्रतिशत ब्याज देना होगा। कुल राशि 47 लाख होती है। राशि एक माह में देनी होगी। अधिवक्ता ने बताया कि 2008 तक डॉक्टर कहते रहे कि बच्चा ठीक हो जाएगा। आयोग ने कहा है कि सोनोग्राफी में बच्चा सही दिख रहा है। जब बच्चे का जन्म हुआ तो वह न तो रोया, न ठीक से सांस ले पा रहा था। दूध भी वह नहीं पी रहा था। केस में मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ था।
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जानिए...क्या, कब और कैसे हुआ
याचिकाकर्ता वर्ष 2006 में गर्भवती थी। सीएचएल अस्पताल में डॉ. नीना अग्रवाल की देखरेख में इलाज हुआ। डॉक्टरों के कहने पर प्रसव के लिए भर्ती कराया। 12 से 13 घंटे तक प्रसव पीड़ा हुई, लेकिन तब स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं थे। उन्हें लेबर रूम में शिफ्ट किया। डॉक्टर ने फोन पर स्टाफ को प्रसव के लिए निर्देश दिए। प्रसव के दौरान बच्चा फंस गया तो वेंटोस और फॉरसेप (चिमटे जैसा उपकरण, जिससे बच्चे का सिर पकड़कर खींचा जाता है) का प्रयोग किया। परिवार से सहमति नहीं ली गई। बच्चे का जन्म हुआ तो वह रोया नहीं। लेबर रूम में ऑक्सीजन सिलेंडर भी नहीं था। नर्स को ऑक्सीजन मास्क और सिलेंडर लाने में तीन से पांच मिनट लगे। इस लापरवाही से समय पर नवजात के दिमाग में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाई। फॉरसेप से बच्चे को खींचने के कारण उसके सिर में खून का थक्का बन गया। नवजात को जन्म से ही सेरेब्रल पॉल्सी नामक बीमारी हो गई। ये बीमारी लाइलाज है।
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