MP: नेताओं की दल बदलने के बाद चमकी किस्मत, इन जिलों के मौजूदा सभी विधायक बदल चुके हैं पार्टी

Wednesday, 6 December 2023

/ by BM Dwivedi

रहिये अपडेट, रीवा/मऊगंज। मध्यप्रदेश में इस बार के विधानसभा चुनाव कई मायने में अलग हैं। जीत का विश्वास पाले बैठी कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। वहीं सत्ता वापसी को लेकर आशंकित भाजपा को राज्य की जनता ने बड़ा तौहफा दिया है। रीवा और मऊगंज जिले की बात करें तो इस बार यहां चुने गए सभी विधायक ऐसे हैं जिनकी किस्मत दल बदलने के बाद ही चमकी है। यानी कि जिन दलों से चुने गए हैं, इसके पहले वह दूसरे दलों में थे। उनकी राजनीतिक शुरुआत अन्य पार्टी के साथ हुई लेकिन सफलता दल बदल करने के बाद मिली है। रीवा और मऊगंज से जीते सभी विधायक दल बदलने के बाद भाजपा या फिर कांग्रेस में आए उसके बाद उनकी किस्मत चमकी है। आइये जानते हैं इन आठों विधायकों के राजनीतिक सफर के बारे में।

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मौजूदा विधायकों का राजनीति सफर 

राजेन्द्र शुक्ला
रीवा सीट से लगातार पांचवी बार चुनाव जीतने वाले राजेन्द्र शुक्ला वर्ष १९९८ से भाजपा से लड़ रहे हैं। पहला चुनाव हार गए थे। उन्होंने अपनी राजनीतिक शुरुआत कांग्रेस से की थी। प्रदेश स्तर के पदाधिकारी भी रहे। 


गिरीश गौतम
देवतालाब से लगातार जीत रहे गिरीश गौतम की राजनीतिक पृष्ठभूमि कम्युनिष्ट की रही है। भाकपा से वह कई चुनाव लड़े और हारते रहे। उनकी किस्मत भाजपा में आने के बाद खुली। वर्ष २००३ में मनगवां से श्रीनिवास तिवारी को हराकर चर्चा में आए। 


दिव्यराज सिंह
सिरमौर से तीसरी बार विधायक चुने गए दिव्यराज सिंह की राजनीतिक शुरुआत कांग्रेस से हुई थी। वह कुछ समय तक कांग्रेस में रहे इसके बाद भाजपा में शामिल होकर सिरमौर से चुनाव लड़े और जीत गए। लगातार तीन बार जीतकर दूसरे दलों कों वहां कमजोर किया है।


प्रदीप पटेल
मऊगंज से दूसरी बार विधायक बने प्रदीप पटेल भाजपा के संगठन में कई पदों पर भी रह चुके हैं। उनकी राजनीतिक शुरुआत बहुजन समाज पार्टी से हुई थी। जिले में बसपा का कैडर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 

नागेन्द्र सिंह
गुढ़ सीट से पांचवी बार चुने गए नागेन्द्र सिंह पुराने कांग्रेसी हैं। एक बार वह कांग्रेस की टिकट पर ही विधायक चुने गए थे। कई बार वह चुनाव भी हारे और उपेक्षित किए गए। भाजपा में आते ही किस्मत फिर चमकी और राजनीति में स्थापित हो गए। 


सिद्धार्थ तिवारी
त्योंथर से विधायक चुने गए सिद्धार्थ तिवारी की शुरुआत कांग्रेस से हुई। इनके पिता-दादा लंबे समय तक जिले में कांग्रेस का चेहरा रहे। इसी चुनाव में कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो बगावत कर भाजपा में गए और टिकट पाकर चुनाव लड़े और जीते। इसके पहले कांग्रेस से लोकसभा प्रत्याशी थे, हार गए थे। 


नरेन्द्र प्रजापति
मनगवां से पहली बार विधायक चुने गए नरेन्द्र प्रजापति कांग्रेस पार्टी में कई वर्षों तक अलग-अलग पदों पर रहे हैं। कुछ समय पहले ही भाजपा में आए टिकट भी पा गए और विधायक भी बन गए। पूर्व में वह बसपा के साथ भी जुड़े थे।


अभय मिश्रा
सेमरिया से कांग्रेस की टिकट पर जीते अभय मिश्रा भाजपा में लंबे समय तक रहे। पहली बार विधायक भाजपा की टिकट पर ही चुने गए थे। उनकी पत्नी नीलम भी भाजपा से विधायक रहीं। वर्ष 2018 में चुनाव से पहले अभय कांग्रेस में आए थे और रीवा से चुनाव लड़े। कुछ महीने पहले ही वह फिर भाजपा में चले गए थे और वहां टिकट नहीं मिली तो फिर कांग्रेस में लौटे और टिकट लेकर विधायक चुने गए। 


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