डकैतों की दहशत खत्म, एमपी के तराई अंचल में सिलिका सेन्ड का फिर शुरु हुआ उत्खनन

Thursday, 12 January 2023

/ by BM Dwivedi

मध्यप्रदेश का रीवा जिले का तराई अंचल एक ऐसा क्षेत्र है जहां की धरती सोना उगलती है। चाहे वह खेती को लेकर देखा जाये या फिर सिलिका सेन्ड को लेकर देखा जाये। यह दुर्भाग्य की बात थी कि एक समय ऐसा था कि तराई अंचल में नामी डकैत ददुआ, सीताराम, हनुमान जैसे कई गिरोह का बोल बाला था। जिनकी कमाई का जरिया अपहरण फिरौती तो था ही साथ ही तराई अंचल में ठेकेदारी करने वाले उद्योगपतियों से अवैध वसूली। डकैतों की दहशत से तराई अंचल में उद्योगपतियों ने अपनी दूरी बना ली। जिसकी वजह से एक ओर जहां रोजगार के लाले पड़ गये तो वहीं दूसरी ओर शासन को भी राजस्व क्षति उठानी पड़ रही थी। लेकिन अब यह दिन दूर हो गये जब तराई अंचल में डकैतों की धमक हुआ करती थी। इस समय तो वहां के लोग धरती से सोना पैदा करने में लग गये। इसमें कलेक्टर मनोज पुष्प और खनिज अधिकारी रत्नेश दीक्षित का विशेष योगदान रहा है। जो वर्षो से बंद सिलिका सेन्ड की बंद खदानों को शुरु किये जाने की पहल को अंजाम दे रहे है।

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1980 में लीज हुई थी स्वीकृत, बंजर पड़ी थी खदानें 

तराई अंचल के त्योथर तहसील अंर्तगत यूपी सीमा से जुड़े कोटवा खास, हड़हाई, डभौरा, रघुनाथपुर, कूड़ी, अंसरा सहित कई ऐसे गांव है जहां की धरती सिलिका सेन्ड उगलती है जो उड़ीसा सहित अन्य राज्यों में भेजी जाती थी। उन दिनों खनिज विभाग से यूपी के उद्योपतियों ने जमीन को लीज में लेकर उत्खनन का कार्य शुुरु किया था। लेकिन डकैतों की दहशत से काम छोड़ कर पलायन कर गये थे। मिली जानकारी के अनुसार 9 मार्च 1983 को त्योथर तहसील के ही अंसरा में यूपी प्रयागराज जिले के शंकरगढ़ निवासी अमिता गुप्ता ने 8 मार्च 2033, यूपी प्रयागराज निवासी मेसर्स मोदीराम रामलाल और पार्टनर नीरज गुप्ता ने त्योथर तहसील के ही कोटवा खास, हड़हाई और डभौरा में 4 अक्टूबर 1980 से 31 मार्च 2025 तक की लीज ले रखी है। लेकिन डकैतों के आतंक की वजह से खदानें नहीं चली। 

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फर्म के नाम का यूपी के नीरज ने तराई अंचल में  लहराया परचम

4 अक्टूबर 1980 से 31 मार्च 2025 तक के लिए यूपी प्रयागराज निवासी मेसर्स मोदीराम, रामलाल नामक फर्म ने लीज से ले रखी थी। फर्म द्वारा त्योंथर तराई अंचल के यूपी सीमा से सटे कोटवा खास, हड़हाई एवं डभौरा में 12.101 हेक्टयर भूमि में सिलिका सेन्ड का उत्खनन शुरु भी किया था। लेकिन डकैतों की दहशत से उक्त खदानों को बंद कर फर्म के संचालक वापस यूपी चले गये और फिर लौट कर पीछे नहीं देखे। कलेक्टर एवं खजिन अधिकारी के प्रयास से फर्म के पार्टनर नीरज गुप्ता ने हिम्मत बांधते हुये उक्त खदानों को फिर से शुरु कर तराई अंचल में फर्म के नाम का परचम लहरा दिया। आस-पास के लोगों को फिर से रोजगार मिल गया जो कभी परिवार के भरण-पोषण के लिए गांव से पलायन कर बाहर जाते थे। 

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यूपी के उद्योगपतियों में दिखी रूचि, शासन को होगा राजस्व लाभ

जिला खजिन अधिकारी रत्नेश दीक्षित ने बताया कि कलेक्टर की पहल से तराई अंचल में सिलिका सेन्ड की अभी तक पांच खदानों पर काम किया जा चुका है। और भी जमीन की तलास की जा रही है। अभी मेसर्स मोदीराम, रामलाल फर्म द्वारा उत्खनन का कार्य शुरु कर दिया गया है। जवा जनपद के रघुनाथपुर, डभौरा और लोहगढ़ के लिए निविदा का प्रयास किया जा रहा है। निविदा प्रक्रिया में यूपी के उद्योगपतियों द्वारा रूचि दिखाई जा रही है। बताया कि एक खदान से शासन को प्रतिवर्ष 50 लाख रुपये का राजस्व लाभ होगा। अभी फिलहाल पांच खदानों पर काम किया जा रहा है। जिससे शासन को लगभग ढाई करोड़ रुपये का प्रतिवर्ष राजस्व लाभ मिलेगा। इसके साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेंगे।

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दाम कम, काम ज्यादा

खजिन अधिकारी ने बताया कि शासन द्वारा सबसे कम रायलटी सिलिका सेन्ड में ली जाती है। एक टन में महज 60 रुपये रायलटी निर्धारित है। जिसे वह 15 सौ रुपये टन से 2 हजार रुपये टन में बिक्री करते है। वहीं गिट्टी में शासन द्वारा 120 रूपये और बालू में 250 रूपये टन रायलटी ली जाती है। श्री दीक्षित ने बताया कि सिलिका सेन्ड को उपयोग कांच का समान बनाने, स्टील प्लांट में सांचा ढ़लाने, तापग्राही सयंत्र के रूप में उपयोग पर लाया जाता है। साथ ही सिलिका सेन्ड को सोलर ऊर्जा को भी अवशोषित किये जाने में किया जाता है।

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