रहिये अपडेड, रीवा। अयोध्या के नवनिर्मित श्रीराम मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा का आयोजन 22 जनवरी को होने जा रहा है। मंदिर में लगने वाले ध्वज का प्रारूप रीवा निवासी ललित मिश्रा ने तैयार किया है। अब उनके द्वारा श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट को 100 ध्वज सौंपें जायेंगे। वर्षों से श्रीराम के राजध्वज का कोई आधिकारिक प्रतीक नहीं था लेकिन बाल्मिकी रामायण एवं अन्य ग्रंथों में मिले उल्लेख के आधार पर इसे तैयार किया गया है। इसके लिए अयोध्या शोध संस्थान और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कई चरणों पर अध्यन और समीक्षा के बाद निर्णय लिया है कि इस ध्वज में सूर्य के साथ ही कोविदार (कचनार) का भी प्रतीक रहेगा। बतादें कि अयोध्या के श्रीराम मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा का भव्य आयोजन 22 जनवरी को होना है। इसके लिए देश के हर हिस्से और समुदाय के लोगों की भागीदार सुनिश्चित की जा रही है। अयोध्या शोध संस्थान के दिल्ली में संयोजक ललित मिश्रा हैं, जो कि मूलत: रीवा जिले के हरदुआ गांव के रहने वाले हैं। जिन्होंने ध्वज का प्रारूप हाल ही में श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के चंपत राय को भेंट किया है। जिस पर पांच लोगों की कमेटी गठित की गई है। यह कमेटी अब यह तय करेगी कि ध्वज किस आकार का होगा और कहां-कहां पर लगाया जाएगा।
शोभा यात्रा के साथ अयोध्या के लिए किया जाएगा रवाना
ललित मिश्रा के मुताबिक अयोध्या से वनवास जाते समय श्रीराम ने तमसा (टमस) नदी के किनारे का मार्ग चुना था। जोकि रीवा और सतना से होकर गुजरती है। वनवास के दौरान कई वर्षों तक भगवान श्रीराम चित्रकूट में भी रहे। सरभंग आश्रम और गिद्धा पहाड़ का वर्णन भी रामायण आदि दूसरे ग्रंथों में मिलता है। विंध्य का श्रीराम से गहरा नाता रहा है। इसलिए मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो इस क्षेत्र का योगदान जरूरी है। इसी के चलते रीवा में ध्वज तैयार किए जाएंगे और शोभा यात्रा के साथ अयोध्या के लिए रवाना किया जाएगा। सूर्य के उत्तरायण होने पर 15 जनवरी के बाद भेजा जाएगा।
कोविदार को राजवृक्ष का दर्जा प्राप्त था
रामायण व अन्य ग्रंथों के मुताबिक अयोध्या राज्य के ध्वज की पहचान कोविदार से होती थी। उस दौर में इसे राजवृक्ष का दर्जा प्राप्त हुआ करता था। अयोध्या शोध संस्थान के ललित मिश्रा के मुताबिक बाल्मिकी रामायण सहित अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख है। श्रीराम से मिलने के लिया जब भरत चित्रकूट आ रहे थे, तब सबसे पहले निषादराज ने दूर से देखकर सेना को पहचाना था। इसके बाद लक्ष्मण ने भी कोविदार ध्वज से ही पहचान की थी कि यह अयोध्या की सेना आ रही है। अध्ययन के दौरान ध्वज के बारे में जानकारी मिली तो प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क किया गया और ट्रस्ट के साथ भी बैठकें हुईं। जिसके बाद तय हुआ है कि सनातन काल में जो राजध्वज अयोध्या का था, वही एक बार फिर श्रीराम मंदिर में लगाया जाएगा। इस ध्वज में सूर्य का निशान भी रहेगा, क्योंकि सूर्यवंशी राजा श्रीराम थे। कोविदार का वैज्ञानिक महत्व भी है।
No comments
Post a Comment