रहिये अपडेट, रीवा। अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 22 जनवरी को होने जा रहा है। लंबे इंतजार के बाद यह शुभ अवसर आया है। रीवा सहित पूरे देश इनदिनों राम मय है। रीवा राज्य में श्रीराम से जुड़ी अनोखी परंपरा है जो कई पीढ़ियों से चलती आ रही है। यहां के शासकों ने 34 पीढ़ी तक राज किया, लेकिन कभी भी राजगद्दी पर कोई राजा स्वयं नहीं बैठा बल्कि श्रीराम को आराध्य मानते हुए गद्दी का पूजन करने के बाद शासन चलाया। देश आजाद होने के बाद राजतंत्र की जगह लोकतंत्र आया, महाराजाओं का राज खत्म हुआ लेकिन रीवा किले में पहले से चली आ रही परंपरा अब तक बनी हुई है। राजवंश से जुड़े लोग दशहरा के दिन पहले की तरह गद्दी पूजन करते हैं और आराध्य श्रीराम के प्रतीक के साथ शहर में चल समारोह निकाला जाता है।
बाघेल राजवंश ने 1617 में रीवा को बनाई राजधानी
बाघेल राजवंश ने सन 1617 में रीवा को अपनी राजधानी बनाई। तत्कालीन महाराजा विक्रमादित्य सिंह जूदेव ने राजसिंहासन पर स्वयं बैठने के बजाय भगवान श्रीराम को राजाधिराज के रूप में स्थापित किया। राजगद्दी श्रीराम के नाम कर वे प्रशासक के रूप में काम करते रहे। बाघेलवंश के वे 22वें महाराजा थे। इसके पहले बांधवगढ़ में राजधानी थी, वहां पर भी इसी तरह की परंपरा रही है।
लक्ष्मण जी का क्षेत्र होने की वजह से राम को माना आराध्य
बताया जाता है कि रीवा के महाराजाओं द्वारा राजसिंहासन पर नहीं बैठने के पीछे जो कथा प्रचलन में है उस पर कहा जाता है कि श्रीलंका से जीत के बाद अयोध्या लौटे श्रीराम ने अपने भाइयों को देश के अलग-अलग हिस्सों का राज्य सौंपा था। विंध्य का क्षेत्र लक्ष्मण जी के हिस्से में आया था। वह स्वयं राजगद्दी पर नहीं बैठे और श्रीराम को आराध्य मानकर उनके नाम पर ही राजगद्दी समर्पित कर दिया था। बघेलखंड इसी क्षेत्र में आता है, इस वजह से यहां के शासकों ने राजगद्दी श्रीराम को ही समर्पित किए रखा। इतिहासकार असद खाने बताते हैं कि 13वीं शताब्दी में बाघेल राजवंश ने बांधवगढ़ में राजधानी बनाई तो वहां पर यह परंपरा प्रारंभ हुई थी। सन 1617 में रीवा को राजधानी बनाए जाने के बाद से लगातार यह परंपरा चल रही है।
तीन रूपों में राजाधिराज की पूजा
राजघराने की गद्दी पर राजाधिराज की तीन रूपों में पूजा की जाती है। एक भगवान विष्णु, दूसरा भगवान श्रीराम और सीता, तीसरा श्रीराम-लक्ष्मण-सीता की पूजा की जाती है। रीवा राजघराने द्वारा यह पूजा ४०७ वर्षों से अब तक की जा रही है। राजघराने के प्रमुख पुष्पराज सिंह एवं उनके विधायक पुत्र दिव्यराज सिंह अब पूजा कर रहे हैं। हर साल दशहरे के दिन राजधिराज की गद्दी पूजन के बाद चल समारोह शहर में निकलता है।
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