रहिये अपडेट, चुनाव डेस्क। मध्यप्रदेश विधानसभा के लिये 1985 का चुनाव काफी अहम था। प्रधानमंत्री रहीं इंदिरागांधी की मौत के बाद आमजन में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति थी। ऐसे माहौल में पार्टी ने बड़ा निर्णय लेते हुए पहले से अपने चुनावी क्षेत्र में जमे प्रमुख लोगों को टिकट काटकर घर बैठा दिया था। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के पक्ष में माहौल था, उस परिस्थिति में बगावत कर कोई नेता खुद के लिए आगे के रास्ते बंद नहीं करना चाह रहा था। उस दौरान कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे श्रीनिवास तिवारी का भी टिकट काट दिया गया। वह त्योंथर से विधायक चुने जा रहे थे। प्रदेश सरकार में मंत्री भी थे। लेकिन उनकी जगह पार्टी ने गरुण कुमार मिश्रा को प्रत्याशी बनाया। ऐसे में श्रीनिवास तिवारी के समर्थक उनसे बगावत करने की अपील कर रहे थे। लेकिन जनता के रुख को देखते हुए श्रीनिवास तिवारी ने बगावत करने के बजाय पार्टी में रहना ही उचित समझा।
अवसर मिला लेकिन आगे नहीं बढ़ा पाए अधिकांश नेता
इसी तरह देवतालाब सीट से विधायक रहे रामखेलावन नीरत उनदिनों दलित नेता के तौर पर उभर रहे थे। रीवा सहित अन्य क्षेत्रों में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी। इसी दौरान करीब २६ वर्ष के बिन्द्रा प्रसाद को पार्टी ने मैदान में उतारा और वह भी चुनाव जीते। बिन्द्रा संसदीय सचिव भी बने लेकिन राजनीति में आगे नहीं बढ़ पाए। वर्ष 1985 में जिन नेताओं को राजनीति में अवसर मिला उसमें अधिकांश आगे नहीं बढ़ा पाए। नागेन्द्र सिंह पहले कांग्रेस में हुआ करते थे, जिन्हें ताला हाउस से जुड़े लोगों ने टिकट दिलाने और जिताने में प्रयास किया था। ये बाद में पार्टी बदलकर भाजपा में आए और वहां से सफल नेता बने। हालांकि नागेन्द्र विधायक तक ही सीमित रह गए और मंत्री बनाए जाने का अवसर नहीं मिला। वर्ष २००८ में उनका नाम मंत्री बनाए जाने की सूची में शामिल था लेकिन ऐनवक्त पर नाम काटा गया, जिससे उनके समर्थकों ने विरोध किया था। श्रीनिवास तिवारी की जगह टिकट पाकर विधायक बने गरुण मिश्रा भी लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय नहीं रह पाए और राजनीति से दूर जाकर धार्मिक जीवन जीने लगे हैं।
ओल्ड गार्ड बताकर पार्टी ने काटा था कई नेताओं का टिकट
कांग्रेस पार्टी ने 1985 मे पुराने नेताओं को ओल्ड गार्ड बताते हुए उनका टिकट काटा था। जिसमें विंध्य से श्रीनिवास तिवारी और कृष्णपाल सिंह जो सोहागपुर से लड़ते रहे शामिल थे। कृष्णपाल सिंह बाद में कई चुनाव जीते और राज्यपाल भी रहे। साथ ही कई अन्य नेताओं के भी टिकट काटे गए थे जिसमें मैहर के विजयनारायण राय और अमरपाटन के राजेन्द्र सिंह शामिल थे। राजेन्द्र उनदिनों उम्र भले ही कम थी लेकिन वह अपने भाषणों के चलते चर्चा में थे।
दिल्ली से जारी हुई गाइडलाइन
ऐसा नहीं है कि केवल रीवा या विंध्य के प्रमुख नेताओं का टिकट कटा था ऐसा नहीं था। पार्टी की दिल्ली से जारी हुई गाइडलाइन के चलते युवाओं को टिकट दिए गए थे। उस दौर में सबसे सीनियर विधायक रहे मथुरा प्रसाद दुबे जो कोटा (बिलासपुर) से सात बार से जीते रहे थे उनका भी टिकट काट दिया था। वनमंत्री रहे वेदराम, उद्योगमंत्री रहे डॉ. टुमनलाल का मस्तूरी से टिकट काटा गया था। झुमकलाल भेड़िया भी छत्तीसगढ़ के क्षेत्र के चर्चित नेता थे। उनका भी डोंडी लोहारा से टिकट काटा गया था। इसी तरह चंबल, मालवा, महाकौशल आदि क्षेत्रों में भी बड़े नेताओं के टिकट काटे गए थे।
1985 में रीवा जिले के विधायक
- रीवा- प्रेमलाल मिश्रा, जनता पार्टी
- मनगवां- चंपादेवी, कांग्रेस
- गुढ़- नागेन्द्र सिंह, कांग्रेस
- मऊगंज- जगदीश तिवारी, भाजपा
- त्योंथर- गरुण कुमार मिश्रा, कांग्रेस
- देवतालाब- बिन्द्रा प्रसाद, कांग्रेस
- सिरमौर- राजमणि पटेल, कांग्रेस
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