संसद में कानून बनने तक जारी रहेगी नई व्यवस्था : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court's historic decision on the selection of election commissioners)
नई दिल्ली. मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति भी अब कॉलेजियम की तरह स्वतंत्र पैनल के तहत की जायेगी। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआइ का पैनल मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों का चयन करेगा। पैनल की सिफारिश के आधर पर राष्ट्रपति नियुक्ति करेंगे। जस्टिस के.एम. जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की संविधान पीठ ने कहा कि नियुक्ति की यह नई व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक कि संसद इस बारे में कानून नहीं बना देती।
लोकतंत्र की मजबूती के लिए चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता जरूरी
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता बनाए रखनी चाहिए, अन्यथा इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि वह जस्टिस जोसेफ के फैसले से पूरी तरह से सहमत हैं। फैसले से मुख्य चुनाव आयुक्तों और आयुक्तों की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया को रद्द कर दिया जायेगा। पीठ ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कानून बनाने का काम संसद पर छोड़ दिया था, लेकिन व्यवस्थाओं ने उनके इस विश्वास को धोखा दिया। पीठ ने कहा कि आयोग के कामकाज को कार्यपालिका के दखल से अलग करने की जरूरत है।
बतादें कि चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। शुरुआती दिनों में सिर्फ एक मुख्य चुनाव आयुक्त का पद था। आयोग में 1993 में दो आयुक्तों के पद को और जोड़ दिया गया। अब तक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र सरकार की सिफारिश पर संविधान के अनुच्छेद-324 (2) के तहत राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी। जिनका कार्यकाल 6 साल या 65 साल की आयु तक होता है। चुनाव आयुक्तों का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश स्तर का होता है। हालांकि उनके फैसलों को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। असामान्य परिस्थिति में संसद में महाभियोग प्रस्ताव पारित कर मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाया जा सकता है, जबकि आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर राष्ट्रपति हटा सकते हैं। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग को लेकर संविधान पीठ ने सरकार से कई सवाल किए। अदालत ने यहां तक कह दिया कि हर सरकार हां में हां मिलाने वाले व्यक्ति को मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त नियुक्त करती है। पीठ ने कहा कि देश को टी.एन. शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की जरूरत है। हमें ऐसे सीईसी की जरूरत है, जो प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई कर सके।
आयोग को नहीं होना चाहिए सत्ता का गुलाम
कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना चाहिए। सत्ता के प्रति दायित्व की दशा में किसी व्यक्ति के मन की स्वतंत्र रूपरेखा नहीं हो सकती। स्वतंत्र व्यक्ति सत्ता का गुलाम नहीं होगा। ईमानदार व्यक्ति बड़े और शक्तिशाली लोगों से टक्कर लेता है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए आम आदमी आयोग की ओर देखता है। लिंकन ने लोकतंत्र को लोगों के द्वारा, लोगों के लिए और लोगों के लिए घोषित किया था। सरकार को कानून के मुताबिक चलना चाहिए। लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है, जब सभी चुनाव की शुद्धता के लिए काम करें। कानून का शासन लोकतांत्रिक स्वरूप का बुनियादी आधार हैं।
Also Read:शादी की रस्मों के बीच दुल्हन के साथ हुआ बड़ा हादसा, साली को दूल्हे संग लेने पड़े सात फेरे
चुनाव आयोग में सुधार, पारदर्शिता, निष्पक्षता और स्वायत्तता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 2018 में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। कोर्ट ने याचिकाओं को क्लब कर पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था। पीठ ने चार साल बाद 18 नवंबर, 2022 से याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। सुनवाई 24 नवंबर को पूरी होने के बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी की थी सिफारिश
यूपीए शासन में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने 2007 में रिपोर्ट में चुनाव आयोग की निष्पक्षता के लिए सिफारिश की थी कि मुख्य चुनाव आयुक्त एवं आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को व्यापक बनाने के लिए पीएम की अध्यक्षता में कमेटी होनी चाहिए। कमेटी में पीएम, स्पीकर, राज्यसभा के उपसभापति, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष व कानून मंत्री सदस्य हों। कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति नियुक्तियां करें। आयोग की यह सिफारिश भी लागू नहीं हुई।
No comments
Post a Comment